अमेरिका और चीन के शोधकर्ताओं ने एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) उपकरण विकसित किया है, जो सटीक जानकारी देने में सक्षम है कि किन मरीजों में संक्रमण घातक स्तर पर है। यह उपकरण कोरोना वायरस से संक्रमित नए रोगी के फेफड़ों में गीलेपन की जांचकर बीमारी की गंभीरता की आशंका का स्तर बता सकता है। हालांकि, इसे अभी प्राथमिक स्तर के अध्ययन पर सफल पाया गया है।
शोधकर्ताओं ने सोमवार को बताया कि उनके तैयार एआई उपकरण ने 80 फीसदी सटीकता के साथ भविष्यवाणी की है कि किन मरीजों में कोरोना वायरस का स्तर घातक हो सकता है। यह उपकरण डॉक्टरों को इस निर्णय में सहायता कर सकता है कि अस्पताल के आईसीयू में और वेंटिलेटर के लिए किन मरीजों को प्राथमिकता दी जाए।
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के ग्रॉसमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन और कोर्टेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं ने चीन में वानजाउ के सेंट्रल हॉस्पिटल और कंगान पीपुल्स हॉस्पिटल के साथ अध्ययन के बाद यह उपकरण तैयार किया है। टीम ने 53 कोरोना वायरस रोगियों के डाटा पर विश्लेषण किया है। ग्रॉसमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन में चिकित्सक प्रो. मेगन कॉफी का इस उपकरण पर आधारित रिसर्च लेख 30 मार्च को ऑनलाइन पत्रिका कंप्यूटर, मटीरियल्स एंड कॉन्टुआ में प्रकाशित हुआ है।
फेफड़ों के एक्सरे का अध्ययन :
टीम ने वानजाउ, चीन के दो अस्पतालों में 53 कोरोनो वायरस रोगियों पर इस अध्ययन डाटा के लिए एक मशीन लर्निंग एल्गोरिदम लागू किया, जिसमें पाया गया कि तीन प्रक्रियाओं में विशेष बदलाव देखे गए। अध्ययन के लिए खांसी, बुखार के दौरान उनके फेफड़ों की रेडियोलॉजिकल एक्सरे (ग्राउंड ग्लास ओपेकिटीज) के एक विशेष पैटर्न का प्रयोग किया गया। इनमें कोविड-19 मरीजों में लिवर एंजाइम एलीनिन एमिनोट्रांस्फरेज (एएलटी) के स्तर, शरीर में दर्द और हीमोग्लोबिन के स्तर में बदलाव भी होता रहा।
फेफड़ों में बढ़ जाता है पानी :
इस उपकरण ने बीमारी से जुड़े कई आश्चर्यजनक संकेतकों की भी खोज की है। जो सबसे अधिक दृढ़ता से अनुमान लगा रहे थे कि तथाकथित तीव्र श्वसन रोग सिंड्रोम को विकसित करने के लिए एक गंभीर जटिलता की स्थिति है जो फेफड़ों को द्रव से भर देती है। यानी आसान शब्दों में समझें तो फेफड़ों में पानी भर जाता है। इसके कारण लगभग 50 प्रतिशत मरीजों की मौत हुई है। हालांकि, अन्य अध्ययनों में 60 से अधिक पुरुषों को उच्च जोखिम में पाया गया है।
एआई का उपयोग नई अवधारणा नहीं :
प्रोफेसर कॉफी ने बताया कि हम अभी इसे और सटीक परिणाम के लिए तैयार कर रहे हैं। यह बहुत कुछ वैसा ही जो कि एक चिकित्सक आम तौर पर मरीजों में देखते हैं कि उन्हें आईसीयू में भर्ती करने की आवश्यकता है या नहीं। मशीनी तकनीक इस काम में बेहतर मदद कर सकती है। चिकित्सा में एआई का उपयोग करना नई अवधारणा नहीं है। उदाहरण के लिए त्वचा विशेषज्ञों को यह अनुमान लगाने में मदद करने के लिए ऐसे उपकरण पहले से मौजूद है कि कौन से मरीज में त्वचा कैंसर गंभीर स्तर पर पनपेगा।
इससे अस्पतालों पर बोझ कम होगा :
कोर्टेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंसेज में क्लिनिकल प्रोफेसर एवं अध्ययन के सह लेखक, डॉ. अनसेसे बारी ने बताया कि जब यह उपकरण पूरी तरह से विकसित हो जाएगा तो चिकित्सकों के लिए उपयोगी होगा। इससे वे आकलन कर सकेंगे कि वास्तव में कन बीमार रोगियों को भर्ती करने की आवश्यकता होगी। इससे अस्पतालों पर बोझ कम होगा। नए अध्ययन का लक्ष्य यह निर्धारित करना था कि क्या एआई तकनीक सटीक भविष्यवाणी करने में मदद कर सकती हैं कि कौन से वायरस के रोगी तीव्र श्वसन संकट सिंड्रोम या एआरडीएस विकसित हो सकता है।